Monday 5 October 2015

समर्पित माँ को।



दिल करता है ,फूट फूट कर रोउ।
मिलों चलू ,चलते चलू ,चलते चलू।

कुछ चुभन है जो मिटता नहि।
क्या कसिस है जो टूटता नहि।

पीछ्ये क्यू नहीं देखता ,कौन पीछा कर रहा।
ये कैसा परछाई है ,जो नजर नहीं आ रहा।

सूरज केह रहा ,मत आ मेरी तरफ 'जल 'जाएगा।
हवा केह रहा ,मत चलो मेरे संग ,
बड़ी दूर तलक उड़तए रह जाएगा।

पहाड़ केह रहा ,कम से कम मुझसे तो मत टकरा ,
चूर चूर होकर 'नदी -झरनो ' मे बेह जायेगा।


 माँ ,मूझे छुपा ले 'आँचल 'मे ,लगा ले 'सीने 'से ,
तेरा बेटा 'दर्द अ गम 'को ,ना सेह पायेगा ,ना सेह पायेगा।

समर्पित माँ को। 

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